nayi-subah

बीत चली थी रात इस तरह,

नयी सुबह का हुआ आगमन।

बैठा पाया गौरैया को,

नीड़ द्वार पर हर्षित मन ॥1॥

 

इधर–उधर कमरे में ताका,

एक अचम्भा हुआ मुझे।

गौरैया से कुछ दूरी पर,

नर शरमाता दिखा मुझे ॥2॥

 

दोनों को इस भान्ति देख कर,

बात समझ में मेरी आई।

पुनर्विवाह रचा कर अपना,

गौरैया दूल्हा चुन लाई ॥3॥

 

बैठा देखा पास प्यार से,

मन में हर्ष विशेष हुआ।

नन्ही प्यारी गौरैया का,

सारा कष्ट अशेष हुआ ॥4॥

 

नई सुबह ने आकर उसके,

जीवन का संचार किया।

सारी खुशियां देकर वापस,

स्वर्ण सुखद संसार किया ॥5॥

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