‘नारी तेरे रूप अनेक’ नामक प्रस्तुत चरित्काव्य भारतीय नारी के वैविध्य पूर्ण जीवन – पक्षों का एक मनोरम एवं सौरभमय गुलदस्ता है । कवि की यह मान्यता प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है कि नारी को अबला न मान कर सबला माना जाये । कवि के मतानुसार समस्त विश्व में नारी के सदृश अन्य कोई प्राणी सर्वगुण सम्पन्न नहीं है । इस कृति में रचनाकार ने नारी के पंद्रह रूपों का चित्रण निम्नलिखित पंद्रह सर्गों में किया है :
विषय – सूची
- नाम – कुँवरपाल सिंह छौंकर “निर्द्वन्द्व”
- जन्म तिथि – 03 जुलाई 1938 – 01 अगस्त 2015
- जन्म स्थान – गांव नगला ततार, जनपद अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
- शिक्षा – एम. ए. (अर्थशास्त्र), राष्ट्रभाषा रत्न (स्नातक), डिप्लोमा-सिविल इंजीनियरिंग
- व्यवसाय – पूर्व सहायक अभियंता, जल संसाधन विभाग, मध्यप्रदेश
- लेखन विधा – वीर रस, श्रृंगार रस, वात्सल्य रस, शांत रस, हास्य व्यंग, दोहा, दुमदार दोहा, छन्द, सवैया, कुण्डलियां, गीत, लोक गीत, पद (भजन), कवित्त, कविता, क्षणिकाएं, लघु कविता, पहेलियां, राष्ट्रीय कविताएं।
- प्रकाशित रचनाएं – नारी तेरे रूप अनेक, श्री गणेश चालीसा, दोहा सप्तक में अन्य छ: कवियों के साथ दोहा शतक, पत्र-पत्रिकाओं में कविता की गीतों, दोहों का प्रकाशन।
- अन्य – रेडियो स्टेशन, जगदलपुर तथा ग्वालियर से कविताओं और गीतों का प्रसारण।
- उपलब्धि (सम्मान) – “नारी तेरे रूप अनेक” पर कवि सभा, दिल्ली से “काव्य गौरव” उपाधि से सम्मान एवं युवा साहित्य मंडल, गाजियाबाद द्वारा सम्मान पत्र।