नारी तेरे रूप अनेक

nari tere roop anek

‘नारी तेरे रूप अनेक’ नामक प्रस्तुत चरित्काव्य भारतीय नारी के वैविध्य पूर्ण जीवन – पक्षों का एक मनोरम एवं सौरभमय गुलदस्ता है । कवि की यह मान्यता प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है कि नारी को अबला न मान कर सबला माना जाये । कवि के मतानुसार समस्त विश्व में नारी के सदृश अन्य कोई प्राणी सर्वगुण सम्पन्न नहीं है । इस कृति में रचनाकार ने नारी के पंद्रह रूपों का चित्रण निम्नलिखित पंद्रह सर्गों में किया है :

विषय – सूची

सर्ग  १: कन्या

सर्ग २: किशोरी

सर्ग ३: मुग्धा

सर्ग ४: पत्नी

सर्ग ५: मंत्राणी

सर्ग ६: माता

सर्ग ७: सास

सर्ग ८: बहू

सर्ग ९: गृहिणी

सर्ग १०: शासिका

सर्ग ११: सेविका

सर्ग १२: दादी नानी

सर्ग १३: नारी की शत्रु नारी

सर्ग १४: स्त्री

सर्ग १५: नारी – नर

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