दो दिन तक वह शोक मनाती,
करती रही विलाप निरंतर।
दाना पानी त्याग दिया था,
स्थिर बैठी रही नीड़ पर ॥1॥
दिवस तीसरे देखा प्रातः,
नीड़ त्याग वह चली गई।
दिन भर लौटी नहीं पलट कर,
धीरे–धीरे शाम हुई ॥2॥
रात हो गई पर गौरैया,
नहीं नीड़ पर वापस आई।
रहा सोचता पड़ा रात को,
क्या अंडे भी छोड़ भुलाई ॥3॥
नींद ना आई थी मुझको,
मैं खोया रहा विचारों में।
गौरैया का जीवन पल में,
घिर गया विपद अंगारों में ॥4॥
हाय विधाता! कितना निष्ठुर,
सुख गौरैया का छीन लिया।
नन्हे नाज़ुक पंछी को क्यों,
इतना भारी दंड दिया ॥5॥