जब कन्या-रूप धरो तुम,
देवी का रूप कहाती ।
श्रद्धा के भाव जगा कर,
मानव से पूजा पाती ॥
वह भोला मुखड़ा तेरा,
लगता है कितना शोभित ।
वह कन्या रूप अनोखा,
करता है जग को मोहित ॥
हँसती हो जब खिल खिल,
पुष्पों की वर्षा होती ।
जब रोने को लग जाती,
तो मोती-लड़ी पिरोती ॥
तेरी मधुर हँसी से,
प्रकृति लगती मुस्काने ।
तेरा उदास मुखड़ा,
जग को लगे रुलाने ॥
मन बहलाया करती,
तुम सब की राजदुलारी ।
बन गुड़िया-जैसी सुंदर,
आंखों को लगती प्यारी ॥
वह रूप सलोना तेरा,
सबका हृदय लुभाता ।
जो देखे तुमको बरबस,
वह अपना नेह लुटाता ॥
प्रकृति की सुषमा जैसी,
वह कोमल कांति मनोहर ।
जगती को मोहित करती,
वह भोली सूरत सुंदर ॥
वो चंचल शोख अदाएं,
औ’ आंखों का मटकाना ।
लगता है कितना अद्भुत,
गुड़ियों का ब्याह रचाना ॥
वह मधुर-मधुर संभाषण,
गुड़ियों के बीच करो तुम ।
गुड़ियों की रानी बनकर,
गुड़ियों पर गर्व करो तुम ॥
तितली सी रंग-बिरंगी,
इधर-उधर हो फिरती ।
पौधों के नीचे छिपकर,
फूलों से बातें करती ॥
जब नन्हे कोमल कर से,
चुनती हो कोमल कलियां ।
तो लगता कितना मोहक,
ज्यों बातें करें तितलियां ॥
जो ईश्वर तुमको देता,
वह रूप मनोहर लगता ।
तुम कभी परी बन जाती,
पर कोई तितली कहता ॥
तुम सबको लगती प्यारी,
सब तुमको गोद खिलाते ।
अपना सब नेह लूटा कर,
मन-ही-मन में हर्षाते ॥
तुम अपने भोलेपन से,
सब जग को वश में करती ।
तुम मीठे बोल सुना कर,
दुखियों के दुख को हरती ॥
कोई ना कभी बन पाया,
बस तेरे एक बराबर ।
तुम-जैसा अद्भुत प्राणी,
ना कोई अन्य धरा पर ॥