निष्प्राण हुये नर गौरैया को,
मैंने तब जल से नहलाया।
कपड़े का इक टुकड़ा लेकर,
उस को कफ़न में लिपटाया ॥1॥
देख रही थी गौरैया यह,
चीं चीं करती जाती थी।
मेरे सर के ऊपर आकर,
उड़ती, रोती जाती थी ॥2॥
लेकर उसको निकला बाहर,
तब भी गौरैया साथ रही।
मैंने एक छोटा गड्ढा खोदा,
तो वह बैठी पास रही ॥3॥
मृत शरीर को बड़े जतन से,
मैंने उस गड्ढे में रक्खा।
वह बड़े ध्यान से देख रही थी,
मैंने मिट्टी से दिया दबा ॥4॥
लौट पड़ा मै निज कमरे में,
मृत शरीर को दफना कर।
गौरैया थी उड़ कर आई,
बैठ गई वह पुनः नीड़ पर ॥5॥