saantavana

तब जल्दी से उठकर मैंने,

गौरैया को लिया उठा।

जल के छींटे देकर उसको,

अपने कर पर लिया बिठा ॥1॥

 

कुछ पल में बेहोशी टूटी,

उसने खोली अपनी आंखें।

हिली डुली वह इधर-उधर,

फिर फैलाई अपनी पांखे ॥2॥

 

कुछ पल में वह सीधी हो कर,

बीच हथेली बैठ गई।

लगी ताकने मुझको एक टक,

आंखों में करुणा भरी हुई ॥3॥

 

मैंने उसके सिर पंखों पर,

सांत्वना का फ़ेरा हाथ।

और झांक कर उन आंखों में,

बोला दुःख में तेरे साथ ॥4॥

 

मिली सान्तवना थी कुछ उसको,

जो आंखों में झलक गई।

कृतज्ञ दृष्टि से देखा मुझको,

उड़ी नीड़ पर बैठ गई ॥5॥