बैठ नीड़ में अंडे सेती मादा,
नर दाना चुन कर लाता।
पास बैठकर गौरैया के,
बड़े प्रेम से उसे खिलाता ॥1॥
हर भांति प्रफुल्लित थे दोनों,
सुख से बीत रहे थे दिन।
दोनों के अपने कार्य बंटे थे,
रहते दोनों हर्षित मन ॥2॥
लेकिन भविष्य से अनभिज्ञ रहे,
ये दोनों नन्हे से प्राणी।
उनका सपना था कुछ दिन में,
गूंजेगी चीं चीं की वाणी ॥3॥
इसलिए नर-मादा दोनों,
अंडों की सेवा थे करते।
कोई चूक ना हो जाए,
अस्तु सतर्क रहा करते ॥4॥
अंतर्मन का नेह लुटाते,
देख-देख कर हर्षाते।
कभी कभी वह बैठ पास में,
चीं चीं कर ये बतियाते ॥5॥
अपार हर्ष उत्साह भरे,
वे फूले नहीं समाते थे।
अपने नवागतों के ऊपर,
वे निज प्राण लुटाते थे ॥6॥
हर भांति सुखी थे दोनों प्राणी,
कर्तव्य कर्म में लीन रहे।
अंडों की रक्षा में तत्पर,
निर्भय हो लवलीन रहे ॥7॥