neer-pravesh

पूर्ण हुआ निर्माण नीड़ का,

तब एक दिन मैंने देखा।

दोनों पंछी बैठ पास में,

करते अपने श्रम का लेखा ॥1॥

 

वक्ष फ़ुलाकर बड़े गर्व से,

नर ने अपने पर फैलाए।

बोला नीड़ बना अति सुंदर,

आओ प्रेयसि मोद मनायें ॥2॥

 

नर की बातें सुन मादा भी,

उसके पास सरक आई।

और चोंच में चोंच मिलाकर,

उसने अपनी खुशी जताई ॥3॥

 

चोंच में चोंच मिलाकर नर ने,

मादा से शुभ बात कही।

ग्रह-प्रवेश अब कर लें रानी,

समय यही है सुखद सही ॥4॥

 

मादा ने तब चीं चीं कर के,

स्वीकृति में सिर हिला दिया।

सहमति पाकर नर मादा की,

ग्रह-प्रवेश को तैयार हुआ ॥5॥

 

वह मादा को आगे कर के,

नये नीड़ में प्रविष्ट हुआ।

गर्व किया अपने श्रम पर,

दोनों का मन संतुष्ट हुआ ॥6॥

 

और इस तरह उन दोनों का,

उजड़ा घर आबाद हुआ।

मन पर जो घिर आया था,

वह सारा दूर विषाद हुआ ॥7॥