चीं चीं चीं गौरैया बोली,
सत्य कहा है तुमने प्रियतम।
दुःख करने से काम चले ना,
फिर से नीड़ बनाएं हम ॥1॥
और फ़ुर्र से उड़कर दोनों,
कमरे से बाहर चले गए।
पल में ही वे लौटे लेकर,
मुख में तिनके नए-नए ॥2॥
उन्हें जमा कर एक कोने में,
फिर बाहर की ओर उड़े।
किंतु दूसरे ही पल आकर,
नीड़ में तिनके नए जड़े ॥3॥
तिनके तो दोनों ही लाते,
नीड़ अकेली मादा बुनती।
तिनके में तिनका उलझाकर,
बड़े ध्यान से उसे परखती ॥4॥
मादा के ही पास बैठकर,
नर ये करतब देखा करता।
होता हर्ष विभोर कभी वह,
पर फ़ैला कर नाचा करता ॥5॥
तल्लीन रहे वह रात-दिवस,
दाना चुगना त्याग दिया।
अपने अधिक परिश्रम से ही,
पुनः नीड़ तैयार किया ॥6॥
अंदर नर्म रुई फ़ैलाकर,
गद्दा सुंदर सुघड़ बनाया।
रंग-बिरंगे पंख लगा कर,
भान्ति-भान्ति से उसे सजाया ॥7॥