दोनों विलाप कर शांत हुए,
तो चीं चीं चीं चीं नर बोला।
सुनो प्रिये, यों दुःख करने से,
कोई काम नहीं होगा ॥1॥
जो होना है वह होता है,
उसकी क्यों परवाह करें।
दिया विधाता ने दुःख हमको,
तो सुख की क्यों चाह करें ॥2॥
यही नियति है हर प्राणी की,
सुख में सभी प्रसन्न होते।
किंतु तनिक सा कष्ट हुआ,
तो रोते अपना भाग्य कोसते ॥3॥
सुख दुःख ही तो जीवन पगली,
सुख जैसा ही दुःख अपनाएं।
जैसे सुख में हर्ष मनाते,
वैसे दु:ख में मौज मनायें ॥4॥
उठो प्रिय, मत हिम्मत हारो,
फिर से जाकर तिनके लाएं।
अपने श्रम से एक बार फिर,
अपना सुंदर नीड़ बनाएं ॥5॥
अपने ही श्रम का महत्व है,
वही रंग दिखलाएगा।
और हमारी फूल बगिया में,
सुंदर सुमन खिलाएगा ॥6॥
होंगे दूर कष्ट के ये दिन,
घोर अंधेरा छंठ जाएगा।
आशाओं की नई किरण ले,
नया सवेरा आएगा ॥7॥
गौरैया को मिली सांत्वना,
दुःख की बदली छितर गई।
दुःख से मुरझाए मुखड़े पर,
मुस्कान खुशी की बिखर गई ॥8॥