vidhwansh-nirasha

नर मादा के कठिन परिश्रम,

से अर्ध नीड़ तैयार हुआ।

तभी एक दिन तीव्र हवा का,

उस पर वज्राघात हुआ ॥1॥

 

नष्ट हो गया नीड़ अधूरा,

तिनका तिनका हवा ले गई।

देख विनाश यों अपने घर का,

गौरैया भयाक्रान्त हो गई ॥2॥

 

घोर निराशा के बादल तब,

उनके मन पर आकर छाये।

एक तार पर बैठ गए वे,

अपने सिर को लटकाए ॥3॥

 

दैवी विपत्ति ने झकझोर दिए,

दुःख सागर में गोते खाते।

हुए शोक संतप्त ह्रदय में,

निज नयनों से अश्रु बहाते ॥4॥

 

करती विलाप अति गौरैया,

हा देव ये तुम्हारा क्या न्याय हुआ।

जो आज अधूरा ही घर मेरा,

मूल सहित बरबाद हुआ ॥5॥

 

यों विलाप करते थे दोनों,

ज़ार ज़ार हो रोते थे।

वे निरीह असहाय हुए,

अपने प्राणों को खोते थे ॥6॥

 

शोक मग्न लख नर मादा को,

मुझको मन संताप हुआ।

हाय विधाता बतलाओ तुम,

पंछी से क्या पाप हुआ ॥7॥

 

इतना बड़ा दंड दे डाला,

उनका नीड़ उजाड़ दिया।

नन्हे पंछी बेचारों को,

घोर कष्ट में डाल दिया ॥8॥

 

घर से बेघरवार कर दिया,

उनका सब कुछ लूट लिया।

उनकी गाढ़ी मेहनत पर ही,

पल में पानी फेर दिया ॥9॥

 

उत्तर नहीं मिला मुझको जब,

तो रहा सोचकर मैं भी मौन।

मुझको उत्तर देने वाला,

वहां उपस्थित था भी कौन ॥10॥