दो रूप पवित्र तुम्हारे,

जिनमें दोष ना पाया ।

जो कवच बने बच्चों के,

जग को सहज लुभाया ॥

 

सर्व सुरक्षित नन्हे-मुन्ने,

दादी – नानी की मात्र गोद में ।

भय ना सताये इनको कोई,

हंसते – खिलते भरे गोद में ॥

 

कहें कहानी दादी – नानी,

नन्हे – मुन्ने सुनें ध्यान से ।

अपनी – अपनी उन्हें सुनायें,

बड़े गर्व से, बड़े मान से ॥

 

बच्चों को यदि कोई डाँटे,

नादानी शैतानी पर ।

‘दादी – नानी से पिटवायें’,

कह दिखलाते उनको डर ॥

 

दादी – नानी के साये में,

रहें सदा निर्भीक – निडर ।

भरा सदा ही रहे मोद में,

दादी – नानी का भी उर ॥

 

दादी – नानी की बैठ गोद में,

चारों ओर से घिर – घिर कर ।

अजब – अनोखी तुतली भाषा,

में बतियाते मधुर – मधुर ॥

 

उनकी मधुर – मधुर बातों का,

दादी – नानी लेती रस ।

कितने प्यारे मिले खिलौने,

मन – ही – मन में होती खुश ॥

 

कभी कान के पास रखें मुख,

गुप्त रूप से बतियाते ।

घर में होने वाली हलचल,

के सारे भेद उन्हें बतलाते ॥

 

बच्चों को यदि प्यार किसी से,

तो वह दादी – नानी हैं ।

पल – पल करें नेह की वर्षा,

कहती नित्य कहानी हैं ॥

 

शैतानी पर बच्चे उतरें,

दादी – नानी को सभी चिढ़ाते ।

लिए लकुटिया कमर झुकाकर,

बूढ़े बनकर मुँह मटकाते ॥

 

आगे – आगे बच्चे भागें,

भागें पीछे दादी – नानी ।

उनके हाथ ना आता कोई,

हँस – हँस करते शैतानी ॥

 

झूठ – मूठ को धमकाती हैं,

तब दोनों दादी – नानी ।

अंतर्मन में लेकिन हर्षित,

देख – देखकर नादानी ॥

 

कुशल चिकित्सक बच्चों की,

उनके दुख – दर्दों को जानें ।

बाल – मनोविज्ञानी बनकर,

उनके अंतर्मन पहचानें ॥

 

बिनु दादी – नानी के कुटिया,

सूनी लगती बच्चों को ।

दादी – नानी के लाड़ प्यार का,

अखरे अभाव सब बच्चों को ॥

 

बच्चों की रक्षा में तत्पर,

रहती दोनों बनकर रक्षक ।

गूढ़ – ज्ञान, जीवन – अनुभव की,

शिक्षा देतीं बनकर शिक्षक ॥

 

घर की शान बढ़ाती हैं ये,

बैठी – बैठी दादी – नानी ।

घर की गूढ़ समस्याएं भी,

सुलझाती हैं दादी – नानी ॥

 

जब तब इनका साया रहता,

तब तक सब निश्चिंत रहें ।

छोटी – बड़ी समस्याओं पर,

इनका ही सब शरण गहें ॥