नारी का है शत्रु अगर,
तो वह केवल नारी है ।
नारी के प्रति नारी ही तो,
ईर्ष्या – द्वेष की मारी है ॥
एक नारी की हो बेटी नारी,
जो बहू अपर घर बनती है ।
माँ की ममता और स्नेह तज,
पति के पीछे चलती है ॥
बेटी चाहे जिस घर की हो,
पर बेटी भी तो नारी है ।
एक पर लाड़ बिखरता है तो,
लगे दूसरी भारी है ॥
बेटी – बेटी में क्यों भेद किया,
वह अपनी हो या कि पराई ।
निज बेटी पर नेह निछावर,
किंतु बहू की करें बुराई ॥
अपनी बेटी के अवगुण भी,
लगते हैं सब प्यारे – सद्गुण ।
किंतु बहू के सद्गुण सारे,
लगते हैं सब खोटे अवगुण ॥
नारी मन का डाह सौतिया,
सौतिन के प्राणों का प्यासा ।
बँटता देखे प्यार पति का,
तैयार करे विष का प्याला ॥
नारी ने दी छूट पुरुष को,
एकाधिक पत्नी रखने की ।
नारी के कोमल भावों से,
खिलवाड़ सहज ही करने की ॥
वैभव – विलास – ऐश्वर्य देख,
वैभव की ओर खिंची नारी ।
वैभव के आकर्षण में फँस,
सब कुछ लुटा रही नारी ॥
नारी – मन को समझ सके, जो,
वह भी केवल नारी है ।
विधि ने मानी हार किसी से,
वह भी केवल नारी है ॥
पुरुष सदा ही डर कर रहता,
नारी से हर पल हारा है ।
नारी ने ही नारी का पर,
पग – पग पर मान उतारा ॥
नारी नर की शक्ति बनी जब,
नर ने नारी को मान दिया ।
नारी नर का काल बनी,
नर ने जब अपमान किया ॥
त्याग, तपस्या, धैर्य, सौम्यता,
शील और संयम, ममता ।
नारी के अद्भुत गुण हैं,
नर क्या कर पाएगा समता ॥
केवल पशु – बल ही दिखलाकर,
नर है नारी को धमकाता ।
नारी के संयम के आगे,
लेकिन वह नर घबराता ॥
नर उत्पीड़ित करता है,
नारी को अपने पशु – बल से ।
नर की इस पशुता का नारी,
प्रतिकार दिखाती संयम से ॥
नर के पशु – बल का नारी,
जग में उत्पीड़न सहती है ।
क्षमामूर्ति है ऐसी लेकिन,
सर्वदा संयमित रहती है ॥
नारी के अद्भुत संयम की,
नर शक्ति नहीं है सह पाता ।
संयम की दृष्टि पड़े तब ही,
नर वहीं ढेर है हो जाता ॥
यदि नारी में पशुता आए,
तो नर को नरक पटाए ।
साहस है क्या मानव में,
जो नारी के सम्मुख आए ॥
त्याग, तपस्या, संयम है,
नारी में नर से बढ़कर ।
नर का पैशाचिक पशु बल,
मरता है उसमें जलकर ॥
नारी ही श्रेष्ठ सबल है,
जो नर को श्रेष्ठ बनाती ।
पति – रूप दिया है उसको,
पति – परमेश्वर उसे बनाती ॥
मानव ने जीता है जग को,
केवल अपने पशु बल से ।
लेकिन नारी ने जीता है,
अपने विवेक और कौशल से ॥
नारी को नर मारा करता,
तलवार तेग और खंजर से ।
नर को मारे नारी लेकिन,
अपनी एक नजर से ॥
कोठे पर जा कर बैठी –
वह वैश्या भी तो नारी है ।
नारी – समाज ने ठुकराई,
तब वैश्या बनी बिचारी है ॥
वैश्या के कोठे पर नारी,
नारी को पहुंचाती है ।
स्वयं करे नारी का शोषण,
नर से शोषण करवाती है ॥
पुरुषों से गठबंधन करके,
नारी को नरक पठाती नारी ।
पुरुषों पर विजयी रही सदा,
लेकिन नारी से हारी नारी ॥
कोई बेटी भाग्य – चक्र – वश,
कुछ दिन कुँवारी रह जाए ।
नारी – समाज में माँ बेटी का,
जीवन दूभर हो जाये ॥
विधवा होते ही नारी पर,
अगणित कष्टों के भार पड़ें ।
सास – ननद सब पार – पड़ोसिन,
कहे कलंकिनी नित्य लड़ें ॥
विधवा हुई बहू को घर से,
सास निकाले डायन कहकर ।
पुत्र – मृत्यु की दुर्घटना का,
मढ़ देती है दोष उसी पर ॥
दैव – आपदा पड़ें कुटुंब पर,
उनकी दोषी भी बहू बने ।
और सुबह से संध्या तक,
विष – भरे व्यंग, कटु – वचन सुने ॥
भिन्न – भिन्न कटु – बंधन लादे,
नारी ने विधवा नारी पर ।
है पहरा कठोर अनुशासन का,
नारी – समाज का नारी पर ॥
द्वारे – द्वारे ठोकर खाती,
एक अभागिन विधवा नारी ।
किंतु नहीं स्नेह मिले,
नारी को दुतकारे नारी ॥
विधवा बेटी घर आये तो,
दृष्टि फेर लेती जननी ।
भाभीयाँ घृणा के तीर छोड़,
दुखित हृदय कर दें छलनी ॥
पुनर्विवाह करे यदि वह,
तो निंदा नारी – समाज करे –
‘प्रथम पति तो निगल लिया है,
दूजे घर पर गाज गिरे ॥
नारी समाज में तिरस्कृता,
घोर नरक का जीती जीवन ।
सहानुभूति के बदले उसको,
मिले प्रताड़न विष आजीवन ॥
नारी ने ही नारी को है,
कुलटा – पापिन नाम दिए ।
कुल – कलंकिनी और निपूती,
कह कर उर मैं घाव किये ॥
नारी सब दुख सह लेती है,
निज अपमान न सह पाती ।
नारी से अपमानित नारी,
काल – सर्पिणी बन जाती ॥
नारी स्वयं शत्रु है अपनी,
सब अधिकार दिये नर को ।
सर्वस्व समर्पित कर अपना,
किया नियुक्त रक्षक नर को ॥
अवरोध कभी ना किया नर का,
स्वयं शक्ति सब देदी नर को ।
अति स्वतंत्र कर दिया स्वयं ही,
करने दी मनमानी नर को ॥
दासी बन कर रही सदा ही,
पति – परमेश्वर मान लिया ।
जितने कष्ट दिये पति ने,
उन सब को सम्मान दिया ॥
पतिव्रता का धर्म निभाया,
दासी बन सब वार दिया ।
पत्नीव्रत बनने को पति से,
कभी न पर अनुरोध किया ॥
स्वयं शक्ति अपनी पहचाने,
टिक ना सकेगा कोई सम्मुख ।
उत्पीड़क नारी – समाज भी,
नतमस्तक विधवा के सम्मुख ॥
घोर विडंबना है यह कैसी,
नारी उपेक्षित नारी से ।
नारी ही नारी की शत्रु बनी,
नारी उत्पीड़न नारी से ॥
नारी से नारी नेह करे,
तो सारे बंधन कट जायें ।
नारी से नारी गले मिले,
तो सूखे उपवन खिल जायें ॥
नारी – उत्पीड़न मिट जाये,
हो नारि, नारि की उद्धारक ।
नारी – समाज – संरक्षण में,
नारी का हो जीवन सार्थक ॥