जिस घर में जीवन भर का,
जो तेरा नाता जुड़ता ।
उस घर की रानी बनती,
गृह – लक्ष्मी नाम निखरता ॥
गृह – लक्ष्मी से भी बढ़कर,
इक नाम तुम्हारा दूजा ।
जो घर – बाहर अग – जग में,
सद्गृहणी बनकर गूँजा ॥
यह गृहणी रूप तुम्हारा,
है अमित गुणों का सागर ।
जितने भी रूप तुम्हारे,
उन सब में गृहणी – आगर ॥
कर्तव्य तुम्हारे अगणित,
जिनका तुम पालन करती ।
अधिकार न कोई माँगो,
शिकवे – गिला ना करती ॥
कर्तव्य – परायणता का,
यह गृहणी रूप तुम्हारा ।
है कर्तव्यों से ऊपर,
अधिकार न एक तुम्हारा ॥
अधिकारों को दी तिलांजलि,
कर्तव्य साकार किए ।
टूटे – बिखरे परिवारों को,
नूतन आकार दिए ॥
रोम – रोम से तेरे केवल,
शुभ कर्तव्य पुकारे ।
तेरे पावन कर्तव्यों ने,
हर पल सभी दुलारे ॥
घर की देख – रेख का रहता,
भार तुम्हारे ऊपर ।
हर सदस्य की चिन्ता रहती,
तुमको निशि-दिन सत्वर ॥
अतिथि तुम्हारे घर पर,
होते जब – कभी उपागत ।
भगवान – समझकर उनका,
करती हो तुम ही स्वागत ॥
तुम अन्नपूर्णा देवी,
भोजन से तृप्ति कराती ।
परिवार – जनों की तृप्ति,
वे स्वयं तृप्त हो जातीं ॥
तुम ऐसी देवी – बढ़कर,
जो सब का भार उठाती ।
तुम सबका मान बढ़ाकर,
अपना भी मान बढ़ाती ॥
सास, ससुर, पति – कुल – तारिणी,
मात – पितागृह – कल्याणी ।
दो वंशों की सहजोद्धारक,
शैल – सुता तुम रुद्राणी ॥
स्वयं प्रसन्न चित्त रहकर तुम,
सबको खुशी लुटाती ।
सबको प्रसन्न रहने का,
तुम अविकल पाठ पढ़ाती ॥
पुत्री, पत्नी, बहु रूप में,
अनन्य सेविका बनती ।
मंत्राणी और माता बनकर,
निश – दिन सेवा करती ॥
गृहिणी का यह रूप तुम्हारा,
सद्गुण – खान – भरा है ।
यह सब रूपों से ऊपर,
स्वर्णोज्ज्वल सदृश खरा है ॥
दुख की परिभाषा को,
तुम ही सुख में बदला करती ।
सद्गृहिणी के सुख को केवल,
तुम ही अनुभव करती ॥
है कौन जगत में ऐसा,
जो तुम समान कहलाए ।
एक मात्र तुम अनुपम,
यह उपमा कोई न पाये ॥
जग – जननी, जग – माता,
जग – भगिनी, मंत्राणी ।
जग के कष्ट हरो तुम,
कमला जग – कल्याणी ॥
अनुबंध तुम्हारे ऐसे –
जीवन में नहीं किसी के ।
कंधों – पर भार तुम्हारे,
कंधों पर नहीं किसी के ॥
हो एक तपस्विनी ऐसी,
करती हो तप आजीवन ।
जिस की अनुपम निधि से,
आलोकित सबका जीवन ॥
अनुशासित होकर जग में,
तुम जग को शासित करती ।
आदर्श और मर्यादा,
तुम नित प्रस्थापित करती ॥
है कोई कवि इस जग में,
जो गुण – धर्म तुम्हारे गाये ।
तुम अपार महिमा मय,
हो, पार न कोई पाये ॥
धन्य विधाता जग के,
नारी को जन्म दिया है ।
गृहिणी ने उतर धरा पर,
धरती को धन्य किया है ॥