अबला जग तुमको कहता,
सबलों पर शासन करती ।
ना समझा अब तक कोई,
वह शक्ति तुम्हारे मन की ॥
पत्नी बन कर तुम पति की,
तुम उस पर शासन करती ।
अतुल प्रेम बरसा कर,
तुम अपने वश में करती ॥
अनुशासन की विधि – भाषा,
तुम पति को समझाती ।
वह राह भटकता दीखे,
तुम सच्ची राह दिखाती ॥
चोर – जुआरी पति हो,
तो दंड – भेद अपनाती ।
सब खोटे कर्म छुड़ाकर,
सज्जन – सत्पुरुष बनाती ॥
देश – द्रोही पति की,
तुम करो भर्त्सना मन से ।
तुम देश – भक्ति सिखलाती,
उर के परिवर्तन से ॥
तुम कुशल प्रशासक बनकर,
शासन स्वच्छ चलातीं ।
तुम नयी नीति अपनाकर,
निज देश समृद्ध बनातीं ॥
जनता के उर की रानी,
सेविका मात्र कहलाती ।
जन – मानस जीतो सारा,
जनता में श्रद्धा पाती ॥
राजनीति के झगड़े,
तुम पलभर में झुलसाती ।
राष्ट्रभक्ति की पोषक,
दुश्मन पर धाक जमाती ॥
अग्रपंक्ति में रहकर,
जब युद्ध – क्षेत्र में जाती ।
ओजपूर्ण तव वाणी,
कायर को सिंह बनाती ॥
शक्ति अपरिमित तेरी,
जग उसका पार ना पाता ।
जब रण में सम्मुख देखे,
तो शत्रु खड़ा थर्राता ॥
शत्रु – सैन्य – बिच घुसती,
चंडी का रूप बनाकर ।
दुश्मन के छक्के छूटें,
वे भागे जान बचाकर ॥
इतिहास गवाही देता है,
सफल सुशासक है नारी ।
गुणवान, सुशीला, देशभक्त,
रण – कौशल सिद्ध – हस्त नारी ॥
लोपामुद्रा विदुषी थी,
गार्गी से ऋषि मुनि हारे थे ।
सीता सतीत्व से लंका जरी,
यम सावित्री से हारे थे ॥
रानी झांसी लक्ष्मीबाई,
जब लेकर सैन्य बढ़ी आगे ।
विद्युत – सी वह चमकी थी,
रण छोड़ शत्रु थे सब भागे ॥
दुर्गावती गोंडवाना की,
रानी भी तो नारी थी ।
गढ़ा – कोटा के युद्धस्थल में,
अकबर की सैन्य संहारी थी ॥
ताराबाई और अहिल्या,
नारी थीं, तलवार बनीं ।
खिलजी की सेना के सम्मुख,
कर्मवति दीवार बनी ॥
जननी, पालक वीर शिवा की,
जीजाबाई भी नारी थी ।
जग को नीति सिखाई जिसने,
वह इंदिरा भी तो नारी थी ॥
कहां गया रण कौशल तेरा,
कहां चली वह शक्ति गई ?
अबला नहीं वही सबला हो,
पहचानो निज शक्ति सही ॥