mantrani

तुम सच्ची मंत्राणी बन,

पति की कठिनाई हरती ।

अपना घर स्वर्ग बनाकर,

अद्भुत उपवन-सी खिलती ॥

 

नैतिकता की परिभाषा,

पति को तुम समझाती ।

आदर्श मार्ग पर चलकर,

पति को आदर्श बनाती ॥

 

घर चले नियोजित ढंग से,

पति को वह नीति बताती ।

तुम अर्थ – तंत्र की ज्ञाता,

वह अर्थनीति बतलाती ॥

 

तुम करो मंत्रणा पति से,

अग – जग की नीति बताकर ।

धन्य – धन्य पति होता,

पत्नी – मंत्राणी पाकर ॥

 

तुम राजनीति की पंडित,

तुम कूटनीति की ज्ञाता ।

धर्म तुम्हीं पर निर्भर,

तुम कर्मकांड विख्याता ॥

 

गुप्तचरी में तुम – सा,

सुना न देखा अब तक ।

घुसपैठ तुम्हारी गहरी,

दुश्मन के अन्तर्गृह तक ॥