एक पिता की पुत्री,
बन दुलहिन जब घर आती ।
शुभ नाम मिले – गृहलक्ष्मी,
अतुलित स्वागत है पाती ॥
सास रूप में नारी,
तुम दिव्य आरती करती ।
बरसों से साध रखी जो,
पूर्ण हुई तुम कहती ॥
कतिपय निश – दिन का अभिनय,
जब समाप्त हो जाता ।
तब सास – रूप का असली,
रूप प्रकट हो जाता ॥
ममता करे पलायन,
सरल स्वभाव बदलता ।
क्रूर भावना उर में,
चेहरे पर भाव उभरता ॥
मस्तक पर उगती रेखा,
भृकुटी धनुष बन जाती ।
सिंधु नेह का सूखे,
वाणी भी कटु हो जाती ॥
सास – रूप यह तेरा,
है पुत्रवधू का शोषक ।
नारी के प्रति नारी के,
क्रूर भाव का पोषक ॥
पुत्र – वधू की ननदें –
वे तेरी प्यारी बेटी ।
वह आई है पर घर से,
लगती है तुमको हेटी ॥
अपनी उच्छृंकल बेटी,
भी भोली तुमको लगती ।
सरल स्वभाव बहू भी,
पर कुलटा – पापिनी दिखती ॥
नित पुत्र वधू के पीछे,
प्रतिपल जासूस निगाहें ।
करती रहतीं जासूसी,
कहाँ बैठ बतलायें ॥
कहाँ जाए क्या करती,
तुम इसकी खोज कराती ।
वह भूखी है, प्यासी है,
यह चिंता नहीं सताती ॥
संपूर्ण समर्पित मन से,
वह सब की सेवा करती ।
घर को स्वर्ग बनाकर,
वह स्वयं नरक में रहती ॥
किंतु खटकती तुमको,
वह दौलत क्यों ना लाई ?
करो प्रताड़ित पल – पल,
क्यों खाली हाथों आई ॥
तुम दहेज की लोलुप,
गुणवान बहू से चिढ़ती ।
हाड़ – मास की मूरति,
लखि मन – ही – मन में कुढ़ती ॥
बैठ परोसिनि के घर,
खुसर – पुसर बतियाती ।
पुत्र – वधू खोटी है,
रो – रोकर बतलाती ॥
हर काम बहू का खोटा,
तुम करती यही शिकायत ।
है कैसी बहु कुलच्छिन,
जवा मिर्च – सी आफत ॥
काम ना कोई करती,
रहती है रानी बनकर ।
रूप लखे दर्पण में,
श्रंगार करे नित दिन भर ॥
आघात बहू पर करती,
व्यंग – बाण भी मारो ।
गाली दो मात – पिता को,
तुम उसको भूखा मारो ॥
यह सास – रूप ही तेरा,
है अति क्रूर भयंकर ।
बहु – रूप का त्रासक,
इसमें उठे बवंडर ॥
यह उग्र रूप जो देखे,
वह बहू मरे यों डर से ।
जो चतुर बहू प्रतिरोधक,
तुम उसे निकालो घर से ॥
बहू न निकले घर से,
तुम मिट्टी – तेल छिड़ककर ।
पल में छुटकारा पाती,
उसको आग लगाकर ॥
मगरमच्छ के आंसू,
भर अपना जाल बिछाती ।
अपना पाप छिपाने,
आत्म – दाह बतलाती ॥
मातृ – भक्त बेटे को,
तुम नित भड़काया करतीं ।
निर्दोष बहू के प्रति तुम,
विष – बेल उगाया करतीं ॥
माता और पिता से,
जो लेकर धन है आती ।
पुत्र गोद में जिसके,
वह सुख का जीवन पाती ॥
गोद बहू की सूनी,
उसको कुलनाशी कहती ।
जीवन कर देतीं दुस्तर,
वह कलंक बाँझ का सहती ॥
काल – चक्र – वश कोई,
यदि मृत्यु, हानि हो जाती ।
तो इसका दोष बहू पर,
हतभागिनि कहलाती ॥
कुछेक सास – ममतामय,
उर में प्यार छलकता ।
निज पुत्री से बढ़कर,
वधू पर नेह बरसता ॥
सास – रूप में ऐसी,
वे धर्मपरायण माता ।
दोनों का हृदय मिला तो,
घर को स्वर्ग बनाता ॥
वे भाग्य शालिनी बहुएँ,
जो सास – रूप माँ पाती ।
उनको अधिकार मिलें सब,
नैहर का प्यारा भुलाती ॥